Sunday 13 December 2015

रियल एस्टेट में निवेश का दायरा है काफी बड़ा

भारतीय नागरिकों के अलावा कुछ अन्य लोगों को भी भारतीय रियल एस्टेट में निवेश करने का सुनहरा अवसर पा सकते हैं। अब आपका सवाल यह होगा कि आखिर वे कौन से लोग हैं, जिनको यह बेहतरीन अवसर मिल सकता है। तो सबसे पहले हम बात करेंगे उन लोगों को जो कभी भारत के निवासी हुआ करते थे लेकिन अब नही हैं यानि अनिवासी भारतीयों को, जिनकी तादाद अब लाखों-करोड़ों में है। इसके अलावा वे लोग जो मूल-रूप से भारतीय हैं जो रोजगार की दृष्टि से विदेशो में रह रहें है जिन्हें पब्लिक ऑफ इंडियन ऑरिजिन भी कहा जाता है। ये सभी लोग आवासीय व वाणिज्यिक अचल संपंतियों में आसानी से निवेश कर सकतें हैं।
यहाँ तक की एन॰ आर॰ आई॰ यानि अनिवासी भारतीय के बच्चों को निवेश करने का पूरा अवसर प्राप्त है।

बहुत सारी विदेशी कंपनियों का मालिकाना हक़ में कई प्रतिशत भागीदारी अनिवासी भारतीयों के पास है वे भी भारतीय रियल एस्टेट में निवेश में कर सकते हैं।

विदेशी कंपनियों व व्यक्तियों को रियल एस्टेट में निवेश करने के लिए यानि किसी तरह भूमि अधिग्रहित करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक से विशेष रूप से अनुमति लेनी पड़ती है। अक्सर विदेशी कंपनियों को सरकार लीज पर व्यसाय करने के लिए मौका देती है। फिर भी अगर चाहें तो ये कंपनियाँ किसी भी तरह के रेजीडेंशियल प्लाट, फ्लैट, टाऊनशिप, व कमर्शियल प्रापर्टीज़ में भी निवेश कर सकते हैं। इसके लिए वित्तीय घरेलु परियोजनाओं में भी निवेश करने का पूरा अधिकार प्राप्त हैं। इसके लिए अनिवासी भारतीय व विदेशी कारपोरेट कंपनियाँ कृषि व फार्म हाउस के ज़मीनों में निवेश कर सकते हैं।  

Sunday 6 December 2015

घर खरीदने से पहले किन चीजों का रखना होगा ध्यान

अगर आप घर खरीदना चाहतें है तो सबसे पहले प्लानिंग की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। अगर आप थोड़ी बहुत जांच-पड़ताल के बाद कोई सौदा कर रहें है तो कोई जरूरी नही है कि आपकी डील फ़ायदें की साबित हो। अगर थोड़ा सी चूक हुई तो सौदा महंगा पड़ सकता है। तो इसके लिए आपको एक जिम्मेदार व समझदार खरीददार बनने की आवश्यकता है। तो इसके लिए आपको एक यथोचित प्रक्रिया से गुजरना होता है।
डेवलपर या बिल्डर से मिलने से पहले कुछ बातें समझना जरूरी है. पहले तो जिस जगह घर लेने की सोच रहे हैं उस इलाके की कीमतों को सबसे पहले समझें. इसमें यह ध्यान रखें कि आप किस तरह के प्रोजेक्ट में घर ले रहे हैं. उदाहरण के लिए एक ही इलाके में ग्रुप हाउसिंग और बिल्डर फ्लैट की कीमतें अलग-अलग होती हैं. अगर ग्रुप हाउसिंग में घर ले रहे हैं, तो उस प्रोजेक्ट की सभी यूनिटों के रेट्स ले लें. फिर उनकी तुलना करें। 
आप जिस भी प्रोजेक्ट में घर ख्ररीद रहे हों, उसमें उपलब्ध सुविधाओं पर भी ध्यान से नजर दौड़ाएं. साथ ही प्रॉपर्टी के डाउन पेमेंट, उसकी कुल कीमत, अचानक होने वाले खर्च, कार पार्किग चार्ज, स्टांप डयूटी और रजिस्ट्रेशन आदि के खर्चो को भी समझ लें। 
अगर प्रॉपर्टी बुक करा रहे हों, तो ये तय कर लें कि तय समय पर जो रकम देनी हो, वही देनी पड़े. इसमें घटत-बढ़त न हो। 
प्रॉपर्टी की खरीदारी में बैंक लोन की भूमिका अहम है. इसलिए कर्ज लेने से पहले बैंकों की ब्याज दरों की तुलना कर लेनी चाहिए. जो बैंक सस्ता लोन दे रहा हो, उसी से लोन लेने की कोशिश करें. कर्ज के लिए बैंक से संपर्क करते समय एक पत्र तैयार करें जिसमें आप अपनी जरूरत की राशि और उसके लिए हर महीने देने वाले किश्त का जिक्र जरूर करें। साथ ही महीने की आमदनी और आपको कितने सालों के लिए कर्ज चाहिए इसका भी ब्योरा रखें. अगर आपने इसका हिसाब लगा लिया, तो आपको कोई भी प्रॉपर्टी खरीदने में समस्या नहीं आएगी क्योंकि तब आपको पता होगा कि खर्च कितना आएगा और महीने की किश्त कितनी देनी है. इससे आपकी जटिलताएं कम हो जाएंगी। 
मकान खरीदने से पहले प्रॉपर्टी के बारे में कुछ बुनियादी और अहम जानकारियां जरूर पता कर लें. जैसे बिल्डर को संबंधित प्राधिकरण से मंजूरी मिली है या नहीं, जमीन की रजिस्ट्री हुई है या नहीं आदि। 
इसके लिए आसान तरीका यह है कि आप होम लोन लें क्योंकि बैंकों और उनके डीएसए (डाइरेक्ट सेलिंग एजेंट) का बिल्डरों से समझौता होता है और वे कागजात की छानबीन कर आपकी समस्या का समाधान कर देंगे. प्रॉपर्टी के दस्तावेजों के साथ-साथ उसके प्लान और लेआउट को भी समझना जरूरी है. घर खरीदते समय, खास कर अगर यह निर्माणाधीन है तो दीवार की गुणवत्ता, ईंट का काम, फिनिशिंग, बिजली का काम आदि पर ध्यान देना चाहिए. इससे आपको एक आइडिया लग जाएगा कि कैसा काम हो रहा है।
डीलर या कंपनी का भरोसेमंद होना भी जरूरी है. आप जिस भी कंपनी या डीलर से बात कर रहे हों, वो भरोसेमंद होना चाहिए. किसी धोखे से बचने के लिए डीलर या कंपनी के बारे में भी ठीक से जानकारी जुटा लें. कई बार डीलरों और कंपनियों के बार में लोग ठीक से जानकारी हासिल नहीं करतें है इससे उनको समस्याओं से जूझना पड़ता है।घर खरीदने से पहले उसकी लोकेशन पर ध्यान देना बेहद जरूरी है. उस इलाके का इन्फ्रास्ट्रक्चर, बस अड्डे, रेलवे स्टेशन, स्कूल, हॉस्पिटल, बाजार और अपने ऑफिस की कनेक्टिविटी के बारे में सोच लें. इसके अलावा आज मॉल और मनोरंजन के दूसरे स्थल भी काफी मायने रखते हैं. इसलिए इन चीजों पर विशेष रूप से ध्यान रखने की आवश्यकता है।
प्रॉपर्टी की कीमत इन सबके आधार पर तय होती होती है. इसलिए इन सब पर ठीक से जानकारी जुटा लें. घर जिस जगह आप प्रॉपर्टी खरीदने जा रहे हैं, वहां की भविष्य कैसा रहेगा. इस पर भी ध्यान देना चाहिए. मान लीजिए जिस जगह आप मकान खरीद रहे हैं, वहां अगले दो साल में मेट्रो निकलनी हो, तो जाहिर है वहां की कीमत बढ़ेगी. ऐसे में वहां निवेश करना फायदेमंद साबित हो सकता है. अगर आप इन बातों पर गौर करेंगे तो बहुत सी परेशानियों से अपने-आप ही बच सकते हैं । 

Saturday 5 December 2015

होम लोन के नियम और कायदे जानना है कितना जरूरी

अगर आप प्रापर्टी खरीदने जा रहे हैं, तो एक महत्वपूर्ण विषयवस्तु होम लोन होता है। जब होम लोन की चर्चा होती है तो कई बार कनफ्यूजन की स्थिति हो जाती है? समझ नहीं आता कि इंटरेस्ट रेट फिक्स्ड हो फ्लोटिंग? आइए जानते हैं कि होम लोन के री-पेमेंट पर ईएमआई किस तरह कैलकुलेट होगी और आपको क्या टैक्स लाभ मिल सकते हैं?
होम लोन फिक्स्ड ब्याज दर पर लें या फ्लोटिंग पर इस उधेड़बुन पर विराम लगाने के लिए अब बैंक ग्राहकों को हाइब्रिड लोन भी देने लगे हैं. इसमें ग्राहक यह तय कर सकते हैं कि वे कुल लोन की कितनी रकम को किस तरह की ब्याज दर पर उधार लेना चाहते हैं. ऐसे लोग, जो रिस्क नहीं लेना चाहते, वे आमतौर पर कुल लोन की 80 प्रतिशत रकम का रीपेमेंट फिक्स्ड रेट पर करना पसंद करते हैं. इसके उलट, ऐसे कर्जदार, जो ब्याज दर में होने वाली किसी गिरावट का फायदा उठाना चाहते हैं, वे अधिक से अधिक रकम फ्लोटिंग रेट पर लेते हैं. जो अब भी यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि उन्हें फिक्स्ड रेट के रास्ते पर चलना चाहिए या फ्लोटिंग रेट का चुनाव करना चाहिए, वे बीच का रास्ता अख्तियार कर सकते हैं. मसलन आधी रकम का भुगतान फिक्स्ड रेट पर कर सकते हैं और आधी रकम को फ्लोटिंग रेट पर चुकता कर सकते हैं.

हाइब्रिड लोन दो तरह के होते हैं. पहला तो यह कि आप कुछ राशि का भुगतान फिक्स्ड रेट पर करें और बाकी का फ्लोटिंग पर. दूसरा यह कि आप एक तय समय जैसे: पांच साल के लिए पूरी रकम को फिक्स्ड रेट पर ले लें. इसके बाद यह टाइम खत्म होते ही आपके लोन पर उस समय का फ्लोटिंग रेट लागू हो जाएगा.
घरों की बढ़ती कीमतों और बढ़ती ब्याज दरों के चलते ईएमआई की रकम भी अच्छी-खासी होने लगी है. वैसे, ईएमआई की रकम इस बात पर निर्भर करती है कि आपने कितना लोन लिया है, ब्याज दर क्या है, लोन के रीपेमेंट की अवधि क्या है और ईएमआई कैलकुलेशन की विधि क्या है, हाइब्रिड लोन कुछ हद तक ईएमआई का बोझ हल्का कर सकता है. मान लीजिए कि किसी व्यक्ति ने लोन पर ली गई कुल रकम का आधा हिस्सा फिक्स्ड रेट पर और आधा हिस्सा फ्लोटिंग रेट पर चुकाने का मन बनाया है.
अब यदि वह 40 लाख रुपये का लोन लेता है, तो वह 20 लाख फिक्स्ड रेट पर और बाकी 20 लाख फ्लोटिंग रेट पर उधार ले रहा है. मान लीजिए, फिक्स्ड रेट 12 प्रतिशत है, तो उसकी ईएमआई 22,022 रुपये होगी और 11 पर्सेंट की फ्लोटिंग रेट पर ईएमआई 20644 रुपये होगी.
इस तरह, नेट ईएमआई होगी 42,666 रुपये. अब इस बात पर विचार करते हैं कि अगर एक व्यक्ति कुल रकम का 25 पर्सेंट हिस्सा फिक्स्ड रेट पर लेता है और बाकी रकम फ्लोटिंग पर.
अब मान लें कि दो साल बाद ब्याज दर 11 पर्सेंट से बढ़कर 13 पर्सेंट हो जाती है. ऐसे मेंए फिक्स्ड रेट पर ली गई 10 लाख की रकम की ईएमआई 11 पर्सेंट के फिक्स्ड रेट के हिसाब से 11,011 रुपये बैठेगी. जबकि बाकी बचे 30 लाख की ईएमआई 13 पर्सेंट की नई ब्याज दर के हिसाब से 35,000 रुपये बैठेगी. उसकी कुल ईएमआई बनेगी.46,159 रुपये. आशय है कि यदि आपने लोन पर ली रकम के ज्यादातर हिस्से को चुकाने के लिए फ्लोटिंग रेट का चयन किया है और ब्याज की दर बढ़ जाती है, तो ऐसे में, आपको अपनी जेब ज्यादा ढीली करनी पड़ेगी.
ईएमआई दो बातों पर डिपेंड करती है: आपने कितनी रकम लोन पर ली है और ब्याज कितना दे रहे हैं. री.पेमेंट के मामले में शुरुआत के कुछ सालों में आप अपनी ईएमआई में ज्यादातर ब्याज की रकम ही चुका रहे होते हैं और उसमें प्रिंसिपल अमाउंट बहुत कम होता है. जैसे-जैसे पूरा लोन चुकाने की समयावधि खत्म होने के करीब आती है, आपको ज्यादातर प्रिंसिपल एमाउंट चुकाना होता है.

टैक्स-बेनिफिट
होम लोन के मामले में प्रिंसिपल अमाउंट पर इनकम टैक्स एक्ट की धारा 80 सी के तहत 1 लाख रुपये तक पर आपको टैक्स छूट का लाभ मिलता है. ब्याज की रकम पर धारा 24 के तहत, अधिक से अधिक डेढ़ लाख रुपये पर टैक्स की छूट मिल सकती है. मान लीजिए कि लोन लेने वाले व्यक्ति की कुल टैक्स योग्य आय है, 15 लाख रुपये. यदि उसने दो लाख का भुगतान ब्याज के तौर पर किया है और 1 लाख का भुगतान प्रिंसिपल अमाउंट के री-पेमेंट के तहत, तो उसकी कुल टैक्स योग्य आय होगी, 15 लाख माइनस डेढ़ लाख माइनस 1 लाख रुपये यानी 12.5 लाख रुपये. इस रकम का 30 पर्सेंट टैक्स के तौर पर देना होगा. मतलब, होम लोन से संबंधित सभी तरह के टैक्स लाभों को काटने के बाद आपको 3.75 लाख रुपये टैक्स के तौर पर देने पड़ेंगे.

जैसे-जैसे साल बीतते जाएंगे, आपकी ई.एम.आई. के माध्यम से इंटरेस्ट अमाउंट का पेमेंट कम और प्रिंसिपल अमाउंट का पेमेंट ज्यादा होता जाएगा. तब संभव है कि आपको ब्याज दर पर 1.5 लाख रुपये का टैक्स लाभ न मिले. ऐसी स्थिति में अगर आप रकम जुटा सकें, तो प्रीपेमेंट के बारे में सोचना लाभ का सौदा हो सकता है. इसके अलावा, यदि आपने म्यूचुअल फंड्स और स्टॉक्स आदि में अच्छा-खासा निवेश किया हुआ है और वहां से आप इन टैक्स बचतों के मुकाबले ज्यादा कमा रहे हैं, तो भी आपको प्रीपेमेंट के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए.

Friday 4 December 2015

रियल एस्टेट बाजार पर पर्यटन का प्रभाव

जैसा की माना जाता है रियल एस्टेट बाजार और पर्यटन उद्योग साथ-साथ चलते हैं। एक क्षेत्र, जहाँ अलग-अलग संस्कृति, परंपरा, कला, संगीत, साहित्य, दर्शन आदि उपलब्ध होते हैं। वहाँ पर निवेशकों द्वारा निवेश में काफी अधिक संभावना होती है। अगर किसी क्षेत्र में अच्छी बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं तो वह एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित नहीं किया जा सकता और फिर वहाँ रियल एस्टेट की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है |
कोई रियल एस्टेट डेवलपर्स किसी भी क्षेत्र में अपनी परियोजना लाने से पहले, उस क्षेत्र को अच्छी तरह से समझ लेता है और उसी के बाद ही अपनी परियोजना के विषय के हिसाब से  योजनाएं बनाते हैं। वह विषय उस क्षेत्र के हिसाब से उपयुक्त भी होना चाहिए।
उदाहरण के तौर पर, जो परियोजनाएं पर्यटक स्थल के पास हैं उन जगहों पर ज्यादा खुली व हरी-भरी जगह होती है। वह जगह प्रकृति के काफी करीब होती है। उसी प्रकार से धार्मिक स्थलों के पास  विकसित की जाने वाली परियोजनाओं को भी उसी प्रकार का रूप रंग दिया जाता है ताकि आने वाले पर्यटकों को आकर्षित करने में समर्थ हों |  
इन्ही कारणों से एक क्षेत्र की संस्कृति और परंपरा उसको मिलने वाले समर्थन रियल एस्टेट के क्षेत्र से मिलता है। कई सारे प्रापर्टी ड्वलपर्स को कई पर्यटक स्थलों पर अपनी परियोजनाएं विकसित कर रहें है जहाँ पर लोगों को आकर्षित करने के लिए एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन और अन्य ढेर सारी सुविधाएं आदि मौज़ूद है। जहाँ पर बेहतर पर्यटन स्थल है, वहाँ मजबूत रियल एस्टेट बाज़ार भी उपस्थित होने की संभावना अधिक होती है।  
पर्यटन और रियल एस्टेट का सीधा रिश्ता होता है। अगर किसी क्षेत्र में पर्यटन का विकास होता है तो वह रियल एस्टेट बाज़ार के विकास में भी बढ़ावा मिलता है। जहां बहु-संस्कृति से भरे हुए क्षेत्र में, सिर्फ देश के लोग ही नही बल्कि विदेशों के पर्यटक भी भारी संख्या में आते है, जोकि विदेशी निवेश (एफडीआई) के भी द्वार भी खोल देता है। इन पर्यटकों में रियल एस्टेट के भविष्य के खरीददार आते है, और वो जल्द ही उस स्थान पर संपत्ति खरीद भी लेते है। सितम्बर से लेकर मार्च तक का समय भारत में पर्यटन का सबसे अच्छा वक़्त माना जाता है और इसी के बीच सबसे ज्यादा त्योहार भी आते है। साल के इस वक़्त इन क्षेत्रों में रियल एस्टेट बाज़ार भी काफी सक्रिय हो जाता है, और यह हमेशा देखा गया प्रापर्टी की अच्छी बिक्री होती है।
यह मानना श्री एस॰ के॰ सिंह, निदेशक, भूमिटेक डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड जोकि एनएच-24 बी॰ यानि लखनऊ-इलाहाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग के करीब में भूमिटेक का ड्रीम प्रोजेक्ट पंचवटी इको विलेजमौज़ूद है, जोकि सांस्कृतिक, शैक्षणिक व पर्यटन की दृष्टि के साथ-साथ भारतीय जीवन शैली का आधार स्तम्भ है।