इको विलेज का सीधा मतलब हमारी प्राचीन ग्रामीण संस्कृति से है, जहां सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय और सांस्कृतिक एकीकरण के माध्यम से व सतत विकास की प्रक्रिया के तहत एक ऐसे पुरातन समुदाय का निर्माण करना है, जहां हम फिर से, एक ऐसे सामाजिक व प्राकृतिक पर्यावरण निर्माण कर सके तथा जहां जीवन जीने को एक नया आयाम मिल सके, जहां पुरातन संस्कृति के साथ-साथ आधुनिकता का एक बेहतर समिश्रण हो।
आधुनिक जीवन शैली ने इंसान के चैन व सुकून के पल को मानो छिन सा लिया है। जिससे प्रकृति प्रदत्त बहुमूल्य उपहारों से दिन-ब-दिन वंचित होता जा रहा है। वह एक ऐसी स्थिति में पहुँच गया है, जहां सिर्फ एक कृत्रिम जीवन-शैली अपना रहा है, वह बिना बुलाये मेहमान की तरह तमाम तरह की बीमारियों जैसे डायबिटीज़, मोटापा व इंसुमेनिया आदि से घिरा हुआ है।
पुरातन समय में हमारी ग्रामीण अर्थव्यस्था शून्य बजट पर आधारित थी। एक हाथ से हम प्रकृति में उपस्थित बहुमूल्य उपहारों को लेते थे, तो दूसरे हाथ हम उन्हें उसके बदले में कुछ न कुछ सौंपते थे, इसलिए हमारी ग्रामीण अर्थव्यस्था व पर्यावरण का संतुलन हजारों-लाखों सालों से बना हुआ था। आज हम एक ऐसे मुकाम पर खड़े हैं, जहां हम प्रकृति में उपस्थित संसाधनों से सबकुछ हासिल कर लेना चाहतें हैं, लेकिन उसके बदले में वापस करने की कोई प्रवृति हममे नही बची है।
जो आज की हमारी सामाजिक व आर्थिक व्यस्था वैश्विक पूंजीवाद पर आधारित है जोकि दूरगामी तौर पर देखा जाय तो कहीं से भी सतत विकास की प्रक्रिया का हिस्सा नही है। जिसके कुछ महत्तवपूर्ण कारण है।
पहला यह कि हम लगातार बिना कुछ सोचे-समझें प्राकृतिक संसाधनो का दोहन करते जा रहें है कि जिससे हमारा पर्यावरण व पारिस्थितिक तंत्र का संतुलन बुरी तरह से बिगड़ गया है। जिसकी मुख्य वजह है आधुनिक जीवन-शैली में इंसान की असीमित आवश्यकता।
दूसरा मुख्य कारण है हमारी आधुनिक अर्थव्यस्था है जोकि मुक्त बाज़ार व वैश्विक पूंजीवाद पर आधारित है जिसने हमारे समाज की सामुदायिक संस्कृति को खत्म सा कर दिया है जोकि सहभागिता की भावना पर आधारित थी।
वहीं जब से देश ने आर्थिक सुधारों को अपनाया हैं तब से औद्योगिक विकास की रफ्तार में कई गुना की बढ़ोत्तरी हुई है जिससे लाखों लोगों को रोजगार भी मिला है। लेकिन उसके बदले में पर्यावरण व प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र का बुरी तरह क्षरण हुआ है। जोकि हमारे पुरातन ग्रामीण सभ्यता पर आधारित थी।
आज शहरीकरण और मानव की असीमित आवश्यकताओं ने हमारी ग्रामीण संस्कृति के प्रति उपेक्षा का भाव पैदा किया है, हम अपनी मूल-भावनाओं से हटकर आधुनिक बनने की चाह में एक ऐसे रेस में लगे हुए हैं जिसका आने वाले समय में एक भयावह दुष्परिणाम साफ नजर आ रहा हैं।
आज की कृषि पद्द्ति पूरी तरह से रासायनिक खाद, पेस्टिसाइड व इन्सेक्टीसाइड पर आधारित हो चुकी है जिसकी वजह से लगातार प्रकृतिक पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुँच रहा हैं। क्योकि इस पद्द्ति से मिट्टी के भीतर प्रकृतिक रूप से उपस्थित लाखों-करोड़ों जीवाणुओं का अस्तित्व खत्म होता जा रहा है। जिससे मृदा दिन प दिन अनुपजाऊ होती जा रही है। क्योकि आज हम कृषि की पुरातन पद्द्ति यानि जैविक व प्राकृतिक कृषि को पूरी तरह से भूल चुके हैं, जिसको सबसे ज्यादा अपनाने की आवश्यकता है। आज हम बहुत सारी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से गुजर रहें हैं जिसके लिए सबसे ज्यादा लोग एलोपैथी उपचार के माध्यम पर निर्भर हैं, जोकि हमारे स्वास्थ्य के लिए लंबे समय तक ज्यादा लाभदायक व प्रभावकारी नही है। हमारी पुरानी चिकित्सा पद्द्ति आयुर्वेद व योग पर आधारित थी, जहां लोगों को स्वास्थ्य-लाभ पहुंचाने की साथ-साथ हमें बीमारियो से दूर-दूर तक भटकने नही देती थी। जिससे लोग एक तरह के स्वास्थ्यवर्धक व शांतिपूर्वक जीवन व्यतीत करते थे।
जब हालत इस कदर हो तो महसूस होता है की क्यों न एक ऐसी जगह की तलाश हो जहां वह प्रकृति से जुड़ी जीवन-शैली को अपना सके। क्या यह सपना आपका सच हो सकता है।
भूमिटेक ड्वलपर्स प्राइवेट लिमिटेड जल्द ही आपके शहर लखनऊ में आपका एक ऐसा सपना सच करने जा रहा है, जो अब तक पूरे उत्तर भारत में अपने आप में एक मिसाल है यानि इको विलेज जल्द लखनऊ में आ रहा है! इसके बारे में जितनी बात की जाय उतना ही कम हैं क्योकि यह अपने आप में चर्चा का विषय है। अब तक इको विलेज का कोई स्थापित मानक नही है चूंकि यह भौगोलिक एवं पारिस्थितिक तंत्र के साथ इसका एक अलग तरह का सामंजस्य होता है, उसका मानक उसी हिसाब से तैयार होता है।
प्रकृति व समाज के बेहतर भविष्य की लिए के लिए, इको विलेज एक ऐसा माडल होगा, जिससे हम यह समझ सकेंगे कि कैसे इंसान प्रकृति के साथ एक बेहतर सामंजस्य कैसे बना सके।
यह तब संभव हो सकेगा, जब हम संगठित रूप से विकास एक ऐसा वैकल्पिक स्पेस तैयार करना होगा, जहां ग्रामीण पर्यटन, योग व ध्यान, आयुर्वेदिक उपचार, जैविक व प्राकृतिक कृषि, गो-शाला संस्कृति, सौर ऊर्जा, अक्षय ऊर्जा, वर्षा-जल संवर्धन, कम ऊर्जा संचयित करने वाले प्लांट व अन्य कई महत्वपूर्ण विधियों से हम प्राकृतिक विकास बढ़ावा दे सकेंगे।