Tuesday 18 August 2015

समाज के प्रति उत्तरदायित्व में 'भूमिटेक' की महती भूमिका

जहां हमेशा से एक बात मानी जाती रही कि आम-जन मानस का कारपोरेट घराने समाज एक प्रति एक विशेष दृष्टिकोण रहता है कि ये सभी कम्पनियाँ अपने व्यक्तिगत फ़ायदे के लिए बनी है जो सिर्फ प्रकृति में उपस्थित सभी प्रकार के संसधानों का उपभोग करती है, और ज्यादा से ज्यादा से लाभ अर्जित करती हैं। वहीं सिर्फ दिखावे के लिए कुछ समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी का हक़ जताती है लेकिन वास्तव में ऐसा नही है यह धारणा सिर्फ कुछ एक कंपनियों के साथ सीमित है।
वहीं कई अन्य बड़ी कंपनिया चाहे वह टाटा ग्रुप या फिर बिरला ग्रुप हो। इस तरह की कई बड़ी कंपनियों ने कारपोरेट सोशल रिसपोन्सबिलिटी में एक बेहतर भूमिका निभाई है। लेकिन इनका दायरा व कार्यक्षेत्र काफी बड़ा है। इस तरह कई अन्य छोटी-बड़ी कम्पनियों ने समाज के प्रति अपने उत्तर दायित्व को लेकर अपनी ज़िम्मेदारी को बख़ूबी से समझ रहीं है।
अभी हाल में ही लखनऊ में स्थित रियल एस्टेट कम्पनी भूमिटेक डवलपर्स ने समाज में हो रही कई तरह सामाजिक गतिविधियों में अपनी भूमिका को बढ़-चढ़ कर सुनिश्चित किया है तथा एक ख़ासी पहचान दिलाई है। जिसने गोमती नदी के संरक्षण को लेकर लोकभारती, उत्तर प्रदेश द्वारा आयोजित गोमती अलख यात्रा में एक महत्वपूर्ण सहयोगी की भूमिका निभाई।
प्रकृति के अमूल्य धरोहर नदियों के संरक्षण को लेकर भूमिटेक की संजीदगी काबिले-तारीफ़ है। जहां जीवन-दायिनी नदियाँ अपने अस्तित्व को लेकर संघर्षरत हैं, वहीं समाज में भी लोग इसकी गंभीरता को बकायदे समझते है लेकिन नदियों की अविरलता व निर्मलता लेकर लोगों कोई ख़ास उत्सुकता नजर नहीं आती है।
उपभोग की संस्कृति से, इंसान को समाज से लेने की प्रवत्ति बढ़ी है लेकिन जिस प्रकृति से हम सब-कुछ अर्जित करना चाहतें है क्या उसे हम, उसके बदले में कुछ लौटा रहें हैं अगर नही तो यह आने वाले समय के लिए यह घातक हो सकता है।
नदियां हमारी प्राकृतिक धरोहर है। दुनियाँ की सभी सभ्यताओं के विकास नदियों के किनारे हुआ तथा नदियों के जल-प्रभाव नदियों के किनारे रह रहे जन-जीवन पर अत्याधिक प्रभाव पड़ता है, जहां एक तरफ एक सुनहरी उम्मीदें है तो दूसरी तरफ एक भयावह त्रासदी नजर आ रही है। भूजल के स्रोत दिन ब दिन सूख रहें हैं। जिससे नदियों का जल-प्रवाह निरंतर घट रहा है और बचा हुआ जल भी नगरीय गंदे एवं मल युक्त नालों, उद्योगों के कचरे एवं हानिकारक रसायनों से प्रदूषित हो रहा है। इसके अतिरिक्त नदियों के तटक्षेत्र में बढ़ती हुई बस्तियाँ, अनियोजित विकास व अतिक्रमण के कारण जीव, जंगल समाप्त हो रहें है जिससे संपूर्ण नदी के सामने संकट खड़ा है। 
अतः गोमती अलख यात्रा का मुख्य उद्देश्य आम-जन में मानस नदी के संरक्षण को लेकर एक समग्र चेतना का प्रवाह हो। इनकी अविरल-निर्मल धारा के साथ किसी तरह का छेड़-छाड़ न हो। जिससे नदियां अपनी पूर्ण वत्सलता के साथ खेतों को पानी, धरती को हरियाली एवं समृद्धि देती हुई बहती रहें।  
यह तभी संभव हो सकता हो जब इसमें जन-भागीदारी के साथ-साथ समाज के सभी वर्गो को एकजुट होकर तन-मन-धन नदियों के अस्तित्व को बचाने की लड़ाई को एक जोरदार मुहिम में बदला जाय।
आज समाज में पर्यावरण की समस्या एक सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। लेकिन समाज में इसके अतिरिक्त अन्य कई गंभीर समस्याओं से ग्रसित है जोकि किसी भी समाज व सरकार के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। समाज में मौजूद सभी सरकारी, गैर-सरकारी संगठनो व कारपोरेट एकजुट होकर इस समस्या के प्रति अपनी जबाबदेही को सुनिश्चित करे। 

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